भाजपा में गुटबाजी और विश्वास का संकट
(पार्टियों द्वारा बांटे गए टिकट के परिणाम स्वरूप पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष)
गदरपुर
भारतीय जनता पार्टी, जिसे विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का गर्व है, इन दिनों निकाय चुनाव में अपने अंदरूनी विवादों और गुटबाजी के कारण चर्चा में है। हाल ही में पार्टी ने कुछ ऐसे कार्यकर्ताओं को अवसर दिया, जिन्होंने पहले कांग्रेस का हाथ थामा हुआ था, और अब भाजपा में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, पार्टी ने एक ऐसे कार्यकर्ता को पालिका अध्यक्ष प्रत्याशी के पद की सीट सौंपी, जिसने कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने का कदम उठाया है, परन्तु पार्टी के इसी बदलाव ने उन पुराने कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा किया है, जो कि लंबे समय से पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे हैं। वहीं पार्टी के 11 कार्यकर्ता जिनकी दावेदारी को नजर अंदाज किया गया, उनका मानना है कि पार्टी में गुटबाजी और अपारंपरिक फैसलों के कारण उन्हें अवसर नहीं मिला।
कार्यकर्ताओं व पूर्व चेयरमैन अंजू भुड्डी और अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रदेश कार्यकर्ता जुल्फिकार अली जैसे नेताओं ने अब निर्दलीय अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की जिसमें पूर्व में रही पालिका अध्यक्षा अंजू भुड्डी ने अपना आवेदन वापस ले लिया, लेकिन उनके पति द्वारा भाजपा के सभासद के सामने सभासद पद पर निर्दलीय मोर्चा खोल दिया। वहीं, पूर्व व्यापार मंडल अध्यक्ष पंकज सेतिया का दर्द भी छलक उठा उनका कहना है, "हो सकता है कि पार्टी में दो गुट होने के कारण ही मेरा टिकट कट गया हो। "यह घटनाएँ भाजपा में असंतोष का रूप लेती नजर आ रही हैं, हालांकि सारे कार्यकर्ता यह कह जरूर रहे है कि हम पार्टी निर्णय के साथ हैं, लेकिन उन सब के मन में कही न कही प्रत्याशियों के टिकिट बटवारे को लेकर असन्तोष है।
इसी कारण कुछ कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर अलग रास्ते पर भी चल पड़े हैं। वहीं बात करे निर्दलीय पूर्व चेयरमैन रहे गुलाम गौस की तो उनका नाम भी सामने आया, जिनका पिछेल 5 सालों तक चेयरमैन के पद पर रहते हुए कुछ सभासदों से 36 का अकड़ा रहा है, और अब कुछ विवादों के कारण उनका व उनके भाई का पर्चा खारिज हुआ। क्योंकि पालिका के अंदर चल रहे विवादों के कारण शायद उनको इस निराशा का सामना करना पड़ा है।
इन सब घटनाओं से यह सवाल उठता है कि !
क्या भाजपा और संघ को इन समस्याओं पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है?
क्या भाजपा को अपनी अंदरूनी गुटबाजी पर काबू पाना होगा?
ताकि यह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी अपनी छवि और शक्ति को बनाए रख सके।
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह समय न केवल आत्म-मूल्यांकन का है, बल्कि पार्टी को अपने पुराने और नए कार्यकर्ताओं के बीच संतुलन साधने की जरूरत है। अब यह देखना होगा कि पार्टी इन आंतरिक विवादों पर कैसे काबू पाती है और अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए क्या कदम उठाती है।
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